नई दिल्ली (The Inside News ): चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि हम भारत से बहुत आगे निकल आए हैं. दोनों देशों के बीच फासला बहुत बढ़ गया है. चीन की इकोनॉमी 13.6 ट्रिलियन की है तो भारत अभी 2.8 ट्रिलियन के ही आसपास है. ऐसे में भारत को ग्रोथ रेट कई गुना बढ़ाना होगा, लेकिन अखबार ने मोदी के आर्थिक सुधारों और कुछ सेक्टर्स में तरक्की की सराहना की है.
अखबार आगे लिखता है कि बेशक भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट पिछले पांच सालों में 6.7 या इससे ऊपर पहुंच गई है, लेकिन सांख्यिकी वजहों से आंकड़ों पर असर पड़ा है. चूंकि सरकार ने जीडीपी को कैलकुलेट करने का तरीका और आधार वर्ष बदल दिया है, लिहाजा नए ग्रोथ के आंकड़े संदेह पैदा करते हैं.
पिछले कुछ साल भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा देने वाले
अखबार यह भी लिखता है कि पिछले कुछ सालों में हालात भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाने वाले रहे हैं, मसलन अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेलों के दाम गिर गए. भारत हर साल इस पर खासा धन खर्च करता है. हालांकि इंटरनेशनल मार्केट में तेल के दामों में उतार चढ़ाव का असर भी घरेलू मुद्रास्फीति पर पड़ा होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था को ग्लोबल ऊर्जा दामों से फायदा पहुंचा है.
मोदी के कदम सकारात्मक असर पैदा करेंगे
अखबार लिखता है कि मोदी ने आर्थिक सुधार के लिए जो कदम उठाए हैं, जो लंबी समयावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पैदा करेंगे. चूंकि कुछ सुधार अचानक किए गए, मसलन नोटबंदी और टैक्स सुधार, इससे असमंजस की स्थिति भी बनी, कुछ छोटे समय के लिए इसका निगेटिव असर भी दिखा, जो स्वाभाविक है, ऐसा होता ही है.
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में क्या अंतर है
आगे ये कहा गया है कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर अकेले दोनों देशों के बीच फासले को चौड़ा कर रहा है. जहां चीन ने इसके लिए अपना खास तरीका और प्रोत्साहन लागू किये हुए हैं, जिससे आने वाले समय में उसके इंडस्ट्री की तकनीक लगातार अपग्रेड होती रहे वहीं भारत ने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को सेलेक्टिव मैनर में विकसित किया है, इसकी वजह से मैन्यूफैक्चरिंग आधार बहुत दमदार तरीके से बनता हुआ नहीं दिख रहा.
कुछ क्षेत्रों में भारत की तरक्की शानदार
अखबार के अनुसार ये दक्षिण एशियाई देश अब भी मैन्यूफैक्चिरंग ताकत के विकास में वही पुरानी समस्याएं झेल रहा है. विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नीतिस्तर पर और काम होना चाहिए. साथ ही लेबर कानून और भूमि कानून पर भी काम करने की जरूरत है.
संरचनागत विकास नहीं हो पाया है. लेबर फोर्स की क्वलिटी भी बहुत अच्छी नहीं है. इसलिए मैन्यूफैक्चरिंग विकास में आड़े आ रहा है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि भारत ने कुछ क्षेत्रों में खासी तरक्की की है.
अब बाहरी कंपनियां देश में ही आकर बड़े पैमाने पर स्मार्ट फोन का उत्पादन कर रही हैं. पिछले कुछ सालों में फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज ने काफी तरक्की की है. लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में सुधार की जरूरत है.